अक्सर मैं एक कमरे में बंद, खिडकी को हल्का सा खोलकर गली में जिसे ढूंढता था ,जिसे देखता था जो बिना मुझे देखे सीधे चली जाती थी,मैं सोचता था उसका नाम पुकारू लेकिन ,उसका नाम क्या मालूम?
रोज उसके बारे में सोचकर मेरा दिन गुजरता था और शाम को जब वो गली से गुजरती मैं देखा करता था। यूंही वक्त गुजरता गया,एक शाम वो मुझे नहीं दिखी ,तब मैं खुद को एक पिंजरे में कैद पंछी कि तरह महसूस कर कहा था तब मुझे एहसास हुआ की वो जिंदगी थी! उसका गली से गुजरना बंद हुआ और फिर मुझे ख्याल आया की क्यों ना उसकी तस्वीर बनायी जाए, जिससे मैं उसे दिन भर देख सकूँ!
फिर ख्याल आया मैं इस अँधेरे कमरे में तो देख ही नहीं सकता जिंदगी तो बाहर ही दिखती है!
फिर सोचा क्यों ना ऐसे रंगों से तस्वीर बनाऊ की जिसे मैं अँधेरे में भी देख सकूँ और सिर्फ मैं देख सकूँ, क्यों ना मैं जुगनू से पुछु कुछ रौशनी का रंग मिल जाए तो मेरी जिंदगी की तस्वीर बन जाए,एक जुगनू तैयार हुआ मुझे रंग देने जो शायद ये सोचकर की मेरे पास तो वो जिंदगी नहीं है फिर इस रंग का क्या करूँगा,मैंने तस्वीर बनायीं दिन रात उसको देखता रहता।
जिंदगी को मालूम था कि मैं गली से देखता था!
एक दिन वो वापस गली में आयी लेकिन मैंने गली में देखना छोड़ दिया था,जिंदगी को ये बात नागवार गुजरी वो अधूरी सीढियाँ चढ़कर मेरे दरवाजे पर पहुँची,आहट सुनकर जैसे ही मैंने पीछे मुड़कर देखा वहां मेरी जिंदगी थी,उसने वैसे ही देखा जैसे मैं उसे गली में देखा करता था!
मैंने सोचा अब तस्वीर का क्या करूँगा,मेरी जिंदगी तो मेरे सामने है,ये तो बस एक तस्वीर है!
मैंने उस तस्वीर को जलाना चाहा, लेकिन जिंदगी ने मुझे रोका और कहा "इस तस्वीर की वजह से ही तुम जिंदगी को इतने करीब से देख पाए हो,और एक दिन यही तस्वीर तुम्हे इस अँधेरे से जिंदगी को पास लेकर आएगी" और इतना कहकर वो चली गयी!
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