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Showing posts from July, 2022

तस्वीर

अक्सर मैं एक कमरे में बंद, खिडकी को हल्का सा खोलकर गली में जिसे ढूंढता था ,जिसे देखता था जो बिना मुझे देखे सीधे चली जाती थी,मैं सोचता था उसका नाम पुकारू लेकिन ,उसका नाम क्या मालूम? रोज उसके बारे में सोचकर मेरा दिन गुजरता था और शाम को जब वो गली से गुजरती मैं देखा करता था। यूंही वक्त गुजरता गया,एक शाम वो मुझे नहीं दिखी ,तब मैं खुद को एक पिंजरे में कैद पंछी कि तरह महसूस कर कहा था तब मुझे एहसास हुआ की वो जिंदगी थी! उसका गली से गुजरना बंद हुआ और फिर मुझे ख्याल आया की क्यों ना उसकी तस्वीर बनायी जाए, जिससे मैं उसे दिन भर देख सकूँ! फिर ख्याल आया मैं इस अँधेरे कमरे में तो देख ही नहीं सकता जिंदगी तो बाहर ही दिखती है! फिर सोचा क्यों ना ऐसे रंगों से तस्वीर बनाऊ की जिसे मैं अँधेरे में भी देख सकूँ और सिर्फ मैं देख सकूँ, क्यों ना मैं जुगनू से पुछु कुछ रौशनी का रंग मिल जाए तो मेरी जिंदगी की तस्वीर बन जाए,एक जुगनू तैयार हुआ मुझे रंग देने जो शायद ये सोचकर की मेरे पास तो वो जिंदगी नहीं है फिर इस रंग का क्या करूँगा,मैंने तस्वीर बनायीं दिन रात उसको देखता रहता। जिंदगी को मालूम था कि मैं गली से द...