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जस्टिफाई

आज इस लेख पर मैं एक लड़के को tag करना चाहता हूँ लेकिन शायद वो fb पर नहीं है, उसी लड़के को इसलिए क्योंकि कुछ साल पहले एक शाम को हम हॉस्टल की छत पर बैठकर बातें कर रहे थे,विषय था rape जिसकी परिभाषा शायद हमें इतना पता है 'कीसी के साथ जबरदस्ती शारिरिक संबंध बनाना'।
वो लड़का rape को जस्टिफाई करने की कोशिस कर रहा था उसका कुतर्क था कि "लड़कियों को छोटे कपड़े नहीं पहनने चाहिए, टाइट कपड़े नही पहनने चाहिए लड़के उत्तेजित हो जाते है"।
मेरा तर्क था कि "इस हिसाब से फिर जो लड़किया बुर्का पहनती हैं या फिर जो 6-7 महीने की होती हैं उनके साथ rape होना ही नहीं चाहिए"? या फिर इसी लॉजिक से अगर कोई व्यक्ति बहुत सारे पैसे लेकर जा रहा है तब उसे लूटने वाले को भी जस्टिफाई किया जा सकता हैं कि इसमें लुटेरे की क्या गलती हो सकती है वो व्यक्ति जो इतने पैसे लेकर जा रहा है उसकी गलती है?
उसका इस सवाल पर भी कुतर्क था " ज्यादातर rape केस fake होते हैं" ok होते होंगें,लेकिन ऐसे कितने cases हैं जो कभी बाहर ही नहीं आते,जिनकी fir तक रिपोर्ट नही होती! और मैरिटल rape जिसे सोसाइटी rape ही नहीं मानती।
उसके बाद मेरा सवाल था कि अगर छोटे टाइट कपडे ही वजह हैं तो क्या जो लड़को के साथ रेप होता है वो भी इसी वजह से होता है?
उसके बाद मेरे मन में ये सवाल था आखिर ये कुतर्क आते कहाँ से है जो rape को भी जस्टिफाई करने की कोशिस करते हैं?
शायद इससे पितृसत्तात्मक समाज कहते हैं, जहाँ मर्द हर  कांड को जस्टिफाई कर सकता है।
जहाँ झुटी इज़्ज़त के लिए अपने बच्चों को मारना भी जस्टिफाई हो जाता है।
मैंने ncrb का डेटा चेक किया,2018 के डेटा के हिसाब से हमारे महान देश में हर 15 मिनट में एक rape होता है।
इस साल मार्च से सिंतबर के बीच करीब 13000 rape हुए हैं।
हमारे देश में प्रतिदिन 109 बच्चों के साथ रेप होता है।
2018 के ncrb के आंकड़ो के अनुसार 21605 बच्चों के साथ rape हुआ जिनमे 21401 लड़कियां और 204 "लड़के"।
हमारा देश जो पूरी दुनिया में प्यार  और कामसूत्र के लिए जाना जाता है, इसी देश में 2018 में 10773 लड़के-लड़कियों को उनके प्यार करने की वजह से मार दिया गया।
इन सबका कारण क्या हो सकता है?
क्या सिर्फ छोटे कपड़े?
नहीं। इसका कारण वो सोच है जो लड़के लड़कियों में भेदभाव सिखाती है,
वो परिवार हैं जो लड़कियों के हर सेकंड का हिसाब रखते हैं लेकिन अपने बेटों को वो जरूरत से ज्यादा छूट दे देते हैं जिनके पास अपने बच्चों के लिए वक्त नहीं होता कि वो जान सकें उनके विचार उनको दिनचर्या क्या हैं?
वो स्कूल जहाँ लड़के लड़कियों के एक ही बेंच पर  बैठना भी गुनाह होता है।
मैंने कुछ साल पहले एक वीडियो देखा जिसमे मैट्रो या बस में एक कपल हाथ पकड़ कर साथ खड़े थे या और भी कुछ शायद और एक अधेड़ उम्र की दकियानूसी महिला हम भारतीयों का जो सबसे पसंदीदा काम है वो कर रही थी, "मोरल टीचिंग"।
कुछ दिनों पहले एक नागपुर का वीडियो था जिसमें सड़क पर दिन दहाड़े कुछ लोग एक आदमी को बुरी तरह मार रहे थे जब तक कि वो मर नही गया और तब तक उसके बगल से करीब दर्जनों लोग गुजर चुके थे, लेकिन तब किसी ने हत्यारों को मोरल टीचिंग नहीं दी, शायद इन्ही लोगो के सामने अगर कोई लड़का लड़की किश करते तो शायद इनका मोरेल टीचर बाहर आ जाता, शायद वो महिला अगर उन हत्यारों के पास से गुजरती तो कुछ बोल भी नही पाती या बोलना जरूरी भी नही समझती, क्योंकि हत्या से ज्यादा खतरनाक किश करना है क्योंकि हत्या से तो एक आदमी मरता है लेकिन किश करने से संस्कृति मर जाती है? शायद उस आदमी से ज्यादा संस्कृति को बचाना जरूरी है?
हमारे देश की सबसे बड़ी समस्या ऐसी मानसिकता ही है जो हमारी सोच को बचपन से हो विकलांग कर देती है जिसपर पोलियो की दवा का असर नहीं होता, हमें समस्याओं को  जस्टिफाई करना सिखाती हैं उसका समाधान ढूंढना नहीं सिखाती।
लड़कों को सिखाया जाता है कि उसके लिए पढ़ लिखकर नौकरी लगना सबसे ज्यादा जरूरी है एक अच्छा इंसान बनना नहीं क्योंकि उसकी नौकरी सब कुछ जस्टिफाई कर सकती है।
लड़कियों को बताया जाता है कि बेटी 6 बजे के बाद बाहर मत जाना क्योंकि बाहर किसी और के बेटे हैं जो तुम्हारे साथ कुछ गलत कर सकते हैं।

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